आज का सुविचार
Piracy क्या है, क्यों है, कैसे है,
किसके लिए है, इसकी क्या आवश्यकता है, क्या भारतीय कॉमिक्स उद्योग Priacy मुक्त हो
सकता है, क्या इसके प्रभाव हैं, आइए देखते है।
क्या है:
किसी दूसरे के द्वारा जनित copyrighted सामग्री का अनैतिक, अवैध नकल द्वारा आर्थिक रूपेन दोहन। ८० और ९० के
दशकों मे जगह जगह पर “नक्कालों से सावधान” की चेतावनी मिलती थी। समय बदला और तरीका
भी बदल गया। अब महंगी किताबों की फोटो कॉपी की जरूरत नहीं पड़ती, अब सब कुछ आपकी मुट्ठी
मे बंद उपकरण मे मौजूद है। ब्लैक एण्ड व्हाइट फोटो कॉपी की जगह पीडीएफ़, cbr ने
ले ली है।
क्यूँ है:
कॉमिक्स
संस्कृति की बड़ी विडंबना है की न निगलते बन रहा है न उगलते। कोरोना महामारी के पहले भारतीय कॉमिक्स को लेकर किसी
की कोई माथापच्ची नहीं दिख पड़ रही थी। न नए
भारत के मुख पत्र, न समाचार, न सोशल मीडिया मे लहर और न ही यूट्यूब के महारथी। कोई
विशेष रूप से दृष्टिगोचर न था। इस समय दशकों
से बंद पड़ी प्रकाशन के नायाब नगीनों का संरक्षण डिजिटल रूप मे किया गया। किसी ने अपने
लिए तो किसी ने इससे आर्थिक संभावनाए बढ़ाने हेतु। कॉमिक्स & यू के सीजन २ मे कॉमिक्स
इंडिया के सीईओ श्री ललित जी ने इस पर अपने विचार प्रकट किए। उनका कहना था की “एक समय
पश्चात, प्रकाशकों ने कॉमिक्स उद्योग को घाटे का सौदा समझकर बंद कर दिया। उस समय आज
के तथाकथित कला बाजारियों ने ही इन कृतिओन को संभाल कर रखा।“ आज जब कॉमिक्स की मांग
जोरों पर है, इन्ही कला के प्रशांसकों ने आगे
आकार अपनी प्रतिया प्रकाशकों को मुहैया करवाई।
कैसे है:
बात
करते है वर्तमान समय की, जहां कॉमिक्स खरीदना अब सस्ता, सरल और सुलभ न रह गया। बचपन
मे ६ रुपए की कॉमिक्स खरीदने की कूवत न रखने वाला मैं, आज का अधेड़ अपनी ६ रुपए की मानसिकता
से निकल नहीं पा रहा हूँ। अब तो कॉमिक्स ४
अंकों के मूल्य पर मिलने लगी हैं। जिस पतली कॉमिक्स को आराम से सो कर पढ़ने की आदत थी,
वो अब चौखटा मे रखकर पढ़ने योग्य हो गई है। कॉमिक्स पढ़ने से अधिक अब किताबों की अलमारी
मे शोभा बढ़ाती भी प्रतीत होती हैं। नए प्रकाशकों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर का हवाला देते
हुए विदेशी कलाकारों का समावेश किया। मजे की बात ये हुई की इस प्रकरण से नए प्रकाशन
के मूल्य और पुरोधा प्रकाशकों के नए मूल्यों के बीच अधिक अंतर न रह गया। पाठक जहां
नए प्रकाशनों को शुरू से ही समर्थन कर रहे थे, वही पाठक पुरोधाओं को मूल्यांकन पर तीखी
प्रतिक्रियाँ देने लगे। इस “आपदा मे अवसर” का लाभ काला बाजारीयों ने समझा। किसी ने
दुर्लभ कॉमिक्स से अपने विछोह का मूल्य लगाया तो किसी ने व्यक्तिगत प्रति छाप कर बेचनी
शुरू कर दी। बढ़े हुए मूल्य का दोहरापन भी सामने आया। कई सारे पुनर्मुद्रण पश्चात जब
नई कॉमिक्स ने कदम रखा तो उसके डिजिटल प्रारूप सोशल मीडिया मे धड़ाधड़ विक्रीत एवं वितरित
होने लगे।
किसके लिए है:
हमे
सब चाहिए, पूर्णरूपेण, उच्चस्तरिए, सही समय अंतराल मे सभी कुछ, परंतु “बिना कोई पैसे
चुकाये”। जब पीडीएफ़ मे मुफ़्त मे मिले तो कोई पैसे क्यों खर्च करे। किसी किसी बंधुओं
ने नाइट शिफ्ट मे ऑफिस के कलर प्रिंटर की मदद से अपना संकलन पूरा किया तो किसी ने मोबाईल
मे पढ़कर किसी और मित्र को प्रेषित कर दिया। इन सभी गतिविधिओं मे कॉमिक्स उद्योग से जुड़े सभी
सदस्यों का परोक्ष रूप से घाटा हुआ। पुनर्मुद्रण मे पैसे ज्यादा क्यूँ? इस सवाल के
जवाब मे राज कॉमिक्स के श्री संजय गुप्ता जी ने कहा की “रचनात्मकता अनमोल है, पुनर्मुद्रण
के फलस्वरूप जो धनराशि संचित होती है उससे सारे कॉमिक्स जगत के सदस्यों का घर चलता
है। ये बात सुनने मे छोटी हो सकती है परंतु नए कॉमिक्स के लिए जो धनराशि जुटानी पड़ती
है वो पुनर्मुद्रण से आती है।” इस युग मे पुरोधा के सस्ते त्राता का अवतरण हुआ जो आते
ही महंगाई डायन से आंखे चौराने लगे। सोशल मीडिया के कई सारे संगठनों मे मांग उठी की
नई कॉमिक्स को ३ महीनों तक प्रेषित न किया जाय ताकि प्रकाशकों को कुछ लाभ मिल सके।
इस के फलस्वरूप जब ५ साल से संचित शक्ति ने बिक्री मे नया कीर्तिमान स्थापित करने के
साथ ही, पाठकों की निश्चल माग को देखते हुए डिजिटल प्रति kindle पर “मुफ़्त” मे उपलब्ध करा दी। भारतीयता की पहचान को डिजिटल / अंकदर्शी
चित्रकथा को अमर्त्य प्रदान करते हुए जीवन पर्यंत सदस्यता भी प्रकाशक द्वारा उपलब्ध
कराई गई।
इसकी क्या आवश्यकता है:
Indiatimes
के ०४-नवंबर-२०१८ के लेख मे कहा गया
की “भारत में बिकने वाले 91% कंप्युटर पायरेटेड विंडोज 10 पर चलते हैं”। आखिर क्यूँ? जवाब है “आदत”। उपभोक्ता को अपने उत्पाद
की लत लगा दो की वो और किसी भी दूसरे विकल्प की ओर सोचें ही नहीं। जाने अनजाने कला बाजारीयों ने यही कार्य किया है।
दशकों पुरानी दुर्लभ कॉमिक्स, जो सिर्फ डिजिटल रूप मे उपलब्ध है जिनका श्रेय कथित कला
बाजारी / पुजारियों को जाता है। कोरोना काल मे इन लोगों ने अपनी प्रति आगे आकार प्रकाशकों
को मुहैया करवाई। जो रंगाई और पुताई करके दुबारा बिकने लगी। इस युग के अनुसार, अंकदर्शन
के मार्ग पर चलते हुए ग्राफिक प्रति लिपि बद्ध तरीके से मोशन कॉमिक्स, ऐनमैटिड सीरीज,
औडियो बुक्स, टीज़र / ट्रैलर इत्यादि तरीके से प्रचार, प्रसार कर रहा है। हैरानी की
बात तो यह है की जहां pubg जैसे गेमिंग कॉम्पनियाँ भारतीय कॉमिक्स उद्योग मे निवेश
कर रही है, वहीं दूसरी तरफ, अभी तक विविध प्रकाशनों के बीच, संयोजन का अभाव है।
Piracy
मुक्ति अभियान:
कुछ
सुझाव:
·
सस्ता, सरल,
सुलभ ही सफलता की कुंजी है। कॉमिक्स वाजिब कीमत पर, सही अंतराल पर, अपने आस पास की
दुकानों पर उपलब्ध हों।
·
Online कॉमिक्स वितरण के साथ साथ ऑफलाइन कॉमिक्स उपलब्ध कराई
जाए।
·
बड़ी बड़ी प्रकाशन
/ पुस्तक विक्रेता अपनी शाखा बढ़ाने पर विचार करें।
·
किराये पर
पढ़ने की सुविधा मिले।
·
डिजिटल /
अंकदर्शी प्रकाशन, पेपर बैक के साथ साथ हो।
·
आंग्रेजी
भाषाओं मे भारतीय कॉमिक्स का अनुवाद हो, जिससे भारत के साथ ही और महत्तम स्तर पर प्रचार
प्रसार हो सके।
·
भारतीय नायकों/नायिकाओं
का विदेशी प्रकाशन के साथ संयोजन हो।
·
भारतीय कॉमिक्स
का विदेशों मे भी विपणन हो जिससे उनकी पहुँच बढ़े।